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एवमुक्त्वा ह्रषीकेश गुडाकेशः परन्तप ।
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ।। ९ ।।
वचः--अर्जुनने बड़ी शूरवीरता और उत्साहपूर्व योध्दाओंको देखनेके लिये भगवान् से दोनों सेनाओंके बीचमें
रथ खड़ा करनेके लिये कहा था । अब वहींपर अर्थात् दोनों सेनाओंके बीचमें अर्जुन विषादमग्न हो गये ।
वास्तवमें होना यह चाहिये था कि वे जिस उद्देश्यसे आये थे, उस उद्देश्यके अनुसार युध्दके लिये खड़े हो
जाते । परन्तु उस उद्देश्यको छोड़कर अर्जुन चिन्ता-शोकमें फँस गये। अतः अब दोनों सेनाओंके बीचमें ही
भगवान् शोकमग्न अर्जुनको उपदेश देना आरम्भ करते हैं ।