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'''मूल श्लोकः'''


धृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।1.1।।

कुरुक्षेत्र में देवताओं ने यज्ञ किया था । राजा कुरु ने भी यहाँ तपस्या की थी। यज्ञादि धर्ममय कार्य

होने से तथा राजा कुरु की तपस्याभूमि होने से इसको धर्मभूमि कुरुक्षेत्र कहा गया है।

यहाँ धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र पदों में क्षेत्र शब्द देने में धृतराष्ट्र का अभिप्राय है कि यह अपनी कुरुवंशियों की भूमि है। यह

केवल लड़ाई की भूमि ही नहीं है, प्रत्युत तीर्थभूमि भी है, जिसमें प्राणी जीते-जी पवित्र कर्म करके अपना कल्याण कर सकते हैं। इस तरह लौकिक और पारलौकिक सब तरह का लाभ हो जाय-- ऐसा विचार करके एंव श्रेष्ठ पुरुषों की सम्मति