Difference between revisions of "Ramcharitmanas"

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कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान।।1।।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान।।1।।
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'''<big>यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम् ।</big>'''
'''<big>तदेव ब्रह्म त्वं विव्दि नेदं यदिदमुपामते ।।4।।</big>'''
जो मनसे मनन नहीं किया जाता, बल्कि जिससे मन मनन किया
हुआ कहा जाता है उसीको तू ब्रह्म जान। जिस इस {देश-कालाव
च्छिन्न} की लोक उपासना करता है वह ब्रह्म नहीं है ।।4।।
जिसका मनके द्वारा मनन नहीं किया जाता; मन और बुध्दिके एकत्वरुपसे यहाँ
मन शब्दसे अन्तकरण ग्रहण किया जाता है। जिसके द्वारा मनन करते हैं उसे
मन कहते हैं ।
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Latest revision as of 16:09, 17 January 2022

चौपाई

बंदउ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सरस अनुरागा।

अमिय मूरिमय चूरन चारु। समन सकल भव रुज परिवारु ।।

सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती।।

जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी।।

श्रीगुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती।।

दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू।।

उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के।।

सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक।।


दोहा/सोरठा

जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिध्द सुजान।

कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान।।1।।



यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम् ।

तदेव ब्रह्म त्वं विव्दि नेदं यदिदमुपामते ।।4।।


जो मनसे मनन नहीं किया जाता, बल्कि जिससे मन मनन किया

हुआ कहा जाता है उसीको तू ब्रह्म जान। जिस इस {देश-कालाव

च्छिन्न} की लोक उपासना करता है वह ब्रह्म नहीं है ।।4।।

जिसका मनके द्वारा मनन नहीं किया जाता; मन और बुध्दिके एकत्वरुपसे यहाँ

मन शब्दसे अन्तकरण ग्रहण किया जाता है। जिसके द्वारा मनन करते हैं उसे

मन कहते हैं ।